मिलारेपा - यात्रा तांत्रिक से महाज्ञानी बनने की, क्या है कैलाश से नाता

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neha riddhi
Published on: November 13, 2024
Updated on: January 12, 2025
मिलारेपा - यात्रा तांत्रिक से महाज्ञानी बनने की, क्या है कैलाश से नाता blog

तिब्बत देश जो अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए समूचे जगत में विख्यात है। यहां के प्राकृतिक सौंदर्य और ऊँचे ऊँचे पहाड़ो के बीच कई सारे रहस्य छुपे हुए है।  इसी सुंदरता और रहस्यमय पहाड़ों के बीच से ऐसा नाम सामने आया जिसने इतिहास के पन्नो में न केवल अपने काळा जादू के वजह से जगह बनाई बल्कि आत्म ज्ञान की उचाईयो को छू कर भगवन के रूप में भी पूजे जाने लगा।

Who is Milarepa? From Dark Magician to Great Saint

मिलारेपा

थोपगा जिसे हम मिलारेपा के नाम से भी जानते है,  का जन्म 11 शताब्दी में 1052 ई को  तिब्बत के दक्षणी भाग में हुआ था।  जिनके पिता का नाम शेसरब् ग्यलछन था जो जमींदार थे, जो अपने सम्पत्ति, जमीन और पशुधन के कारण गांव में प्रतिष्ठित थे।  माँ का नाम ञड्छा कर्ग्यन था। जन्म के चार साल बाद मिलारेपा की छोटी बहन पैदा हुई। मिलारेपा का बचपन बड़े ही प्यार और आराम में बीता।

७ साल की उम्र में ही मिलारेपा के सर से पिता का साया उठ गया जिसने परिवार को आर्थिक और भावनात्मक रूप से अस्त-व्यस्त कर दिया। अपने आंखरी समय में जो वसीयत मिलारेपा के पिता ने बनाई उसके अनुसार जब तक मिलारेपा बड़े नहीं हो जाते तब तक उनके चाचा और चाची ही परिवार की देखभाल और सम्पत्ति की सुरक्षा करेंगे। संपत्ति पर अधिकार करके उन्होंने मिलारेपा की माँ और बहन के साथ नौकरों जैसा व्यवहार किया। उनको दिए जाने वाला भोजन पशुओं को दिए जाने वाले भोजन से भी बदतर था। मिलारेपा की माँ जो कभी शान से अपने घर में राज करती थी उनको अब अपमान का जीवन व्यतीत करना पड़ रहा था।  जिससे उनके मन में बदले की भावना जागने लगी। 

मिलारेपा के १५ साल पूरे हो जाने पर माँ ने जब वसीयत के अनुसार संपत्ति वापस मांगी तो, भरी सभा में उनका अपमान किया गया। इसके बाद उनकी माँ ने एक निर्णय लिया, जिसके तहत उन्होंने मिलारेपा से कहा "अगर हम अपनी  सम्पत्ति वापस नहीं ले सकते है तो हमे उन लोगो से बदला लेना चाहिए।" प्रतिशोध की इस भावना में मिलारेपा में तंत्र विद्या सीखने का निर्णय लिया।  इस विद्या के अध्ययन हेतु वह गांव से दूर चले गए। अनेक गुरुओं और कठिन साधना करके मिलारेपा ने तंत्र विद्या में महारथ हासिल करी। वह इस तरह से तंत्र क्रियाओं में निपुण थे कि उन्होंने ओलावृष्टि पर भी नियंत्रण पा लिया था। 

सारी विद्याओं में महारथ हांसिल करने के बाद अंत में वह दिन आ गया जब मिलारेपा अपने और अपनी माँ-बहन के अपमान का बदला लेने वाला था।  जिसके लिए उन्होंने पहले पूरे गांव में ओलावृष्टि करा के गांव की फसल नष्ट कर दी।  इसके बाद भी मिलारेपा नहीं रुके। गांव में मिलारेपा के चाचा के बेटे की शादी थी, जिसमे पूरा गांव  एकत्र हुआ था।  उन्होंने अपने मंत्रों की शक्ति से विषैले जीवों को उत्पन्न किया, जिससे शादी में अफरा-तफरी हो गयी और 80 लोग उसमे मारे गए। 

एक ओर जहां मिलारेपा की माँ को अपने बेटे के कृत्य पर गर्व महसूस हो रहा था, वही दूसरी ओर मिलारेपा को अपराध बोध हो रहा था।  उन्हें एहसास हुआ की कला जादू और तांत्रिक शक्तिओं से आत्मिक संतुष्टि नहीं मिल सकती थी। 

प्रायश्चित और आत्मज्ञान की यात्रा -

80 निर्दोष लोगो की हत्या के बाद जब मिलारेपा को पाप बोध हुआ तो वह गुरु की तलाश करने लगे।  और वह किसी लामा से मिले जिन्होंने उन्हें मर्पा लोचावा के पास जाने का मार्ग सुझाया। मर्पा एक महान बौद्ध गुरु थे जिन्होंने भारत में महासिद्ध नरोपा से बौद्ध धर्म की गहरी शिक्षा प्राप्त करी हुई थी।  तिब्बत में उन्हें अनुवादक के रूप में भी जाना जाता था। 

मर्पा ने मिलारेपा को मिलते ही अपना शिष्य नहीं बना लिया था।  बल्कि उनकी परीक्षा लेने के लिए कई कठिन कार्य दिए। मिलारेपा ने गुरु मर्पा से आत्मज्ञान और जन्म-मरण के बंधन से मुक्ति की चेष्टा जताई।  उन्होंने में गुरु मर्पा से ऐसी क्रिया के बारे में जानना चाहा जिससे वह इसी जन्म में आत्म ज्ञान पा ले और इस बंधन से मुक्त हो जाए।  गुरु मर्पा में मिलारेपा को कई दीक्षा और क्रियाएं बताई।  जिसके पश्चात् गुरु मर्पा में मिलारेपा को कहा " अब हमे अपने गुरु महासिद्ध नरोपा के पास जाना होगा। " और वह दोनों भारत की यात्रा पर आये।  महासिद्ध नरोपा से मिलने के बाद नारोपा ने मिलारेपा को अंतिम दीक्षा दी जसे आत्मज्ञान का अंतिम पड़ाव माना जाता है। जिसके बाद उनकी आत्मबोध की यात्रा सम्पन्न हुई और वह एक महाज्ञानी और कवि के रूप में उभरे। 

मिलारेपा की कैलाश पर चढ़ाई  -

ना जाने आज तक कितने ही लोगों ने कैलाश पर चढ़ाई करने की कोशिश करी है पर कैलाश पर चढ़ना सबके लिए असम्भव रहा है।  उनकी इसी यात्रा के दौरान  उनकी मुलाकात प्रसिद्ध प्रचारक नरोमान जी से हुई।  नरोमान जी ने मिलारेपा को एक चुनौती दी और खा जो इस कैलाश पर्वत की चोटी पर पहले पहुंचेगा उसका पूरे कैलाश पर वर्चस्व होगा।  मिलारेपा ने इस चुनौती को स्वीकार किया , और दोनों ने अपनी यात्रा प्रारम्भ करी।  नरोमान जी तेजी से चोटी की ओर बढ़ने लगे जबकि मिलारेपा साधना पर बैठ गए।  नरोमान जी सूर्योदय के समय जब चोटी पर पहुंचने लगे तो सूर्य की किरणों से उनकी आँखे चकाचौंध हो गयी और नरोमान जी चोटी पर नहीं पहुंच पाए।  मिलारेपा में जब अपनी यात्रा प्रारम्भ करी तो वह चोटी पर पहुच गए। 

कैलाश की चोटी पर पहुंच कर मिलारेपा में अद्भुत रहस्यों का अनुभव किया।  मिलारेपा ने खा की यह पर्वत साधारण नहीं है और न ही कोई साधारण व्यक्ति इसमें चढ़ने का प्रयास करे, क्योकि यह भगवा शिव का पवित्र निवास है और वे यहां साधना स्वरूप में बैठे है इसलिए जब कोई इसमें चढ़ने का प्रयास करता है तो उससे शिव की साधना में असर पड़ता है। 

अपने 84 वर्ष की आयु में 1134 ई मिलारेपा ने अपने शरीर का त्याग किया। अंतिम समय में उन्होंने अपने सभी शिष्यों को अपने पास बुलाया और कहा मेरा आने का समय आ गया है मेरा जन्म जिस उद्देश्य को लेकर हुआ था वह कार्य मेने पूर्ण किये।  अपने शिष्यों को अंतिम ज्ञान देकर मिलारेपा ने इस भौतिक संसार से विदाई ली और अपनी आगे की यात्रा पर निकल पड़े। 

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