उत्तराखंड की कुल देवी माँ नंदा देवी
यूँ तो उत्तराखंड को देवभूमि उत्तराखंड कहा जाता है। यहां पर अनेकानेक देवी देवताओं का वास है। उन्ही में से एक है माँ नंदा देवी, जिन्हे हिमालय की बेटी के नाम भी जाना जाता है। उत्तराखंड में नंदादेवी नेशनल पार्क का हिस्सा है माँ नंदा देवी पर्वत।
नंदा देवी पर्वत की भौगोलिक परिस्थिति-
नंदा देवी पर्वत जो की पूरी तरह से भारत में है। यह पर्वत समुद्र की सतह से 7817 मीटर ऊँचा है। नंदा देवी पर्वत पर दो शिखर है। जो ऊँचा शिखर है उसे नंदा देवी शिखर कहते है और दूसरा शिखर जो 7434 मीटर की उचाई पर है उसे सुनंदा देवी शिखर कहते है। इन दोनों पहाड़ों को 2 किलोमीटर की लाइन जोड़ती है। यह नंदा देवी पर्वत चारों ओर से बहुत सारे पर्वतो से घिरा हुआ है जिसे बैरियर रिंग ( Barrier Ring ) कहते हैं। इस रिंग में बहुत सारे प्रसिद्ध पहाड़ है जिनमे से एक है दूनागिरी या द्रोणगिरी पर्वत है, जिसका वर्णन रामायण में आता है जब हनुमान जी संजीवनी लेने हिमालय के द्रोणगिरी पर्वत में आते है। इसके साथ साथ त्रिशूल और नंदा देवी ईस्ट पर्वत भी इसी रिंग में आते है। इस रिंग के अंदर का इलाका अब नंदा देवी सेंचुरी (Nanda Devi Sanctuary ) के नाम से जाना जाता है। इसी छोटे-बड़े ग्लेशियर है जिनमे से प्रमुख उत्तरी नंदा देवी ग्लेशियर और दक्षिणी नंदा देवी ग्लेशियर, जो जन्म देते है ऋषि गंगा को। नंदा देवी पर्वत इतना विशाल है कि विश्व के कुछ सु प्रसिद्ध पर्वत भी इसके सामने छोटे नजर आते है। बिषम भौगोलिक परिस्थितियों के कारण यह तक पहुंचना आसान नहीं है।
नंदा देवी पर्वत में पर्वतरोहियों का इतिहास -
इस पर्वत पर इतनी विषम भौगोलिक परिस्थिति है कि इसके बेस तक पहुंचना ही अपने आप में किसी चुनौती से कम नहीं है। बैरियर रिंग के अंदर होने के कारण यहां तक पहुंचने के लिए 2 ही मुख्य मार्ग हैं। पहला ऋषि गंगा की तंग घाटियों से होते हुए और दूसरा वह से जहां पर बैरियर रिंग की ऊंचाई सबसे कम हो, ऐसा ही एक हिस्सा है जिसे लोंगस्टाफ्फ कोल ( Longstaff's Col ) कहते है, जिसकी ऊंचाई 5910 मीटर है। यहां पर टॉम लोंगस्टाफ्फ (Tom Longstaff ) 1905 में पहुंचे थे लेकिन अंदर नहीं पहुंच पाएं।
ऋषि गंगा की घाटियों के माध्यम से भी कई सालो तक अंग्रेजो ने नंदा देवी के बेस पॉइंट का पहुंचने की कोशिश करी पर सफल नहीं हो पाएं। ह्युग रटलेड्ज ( Hugh Rutledge ) ने 1930 में कई बार नंदा देवी पर्वत तक पहुंचने की कोशिश करी पर वो भी असफल रहे। उन्होंने अपने एक इंटरव्यू में यह कहा कि "नंदा देवी पर्वत की सेंचुरी में बपहुचना भर ही नार्थ पोल में जाने के बराबर है।"
1934 में अंततः एरिक शिप्टन ( Eric Shipton ), बिल टिलमैन ( Bill Tilman ) और उनके साथी 8 बार कोशिश करने के बाद सेंचुरी तक पहुंचने में कामयाब हो जाते है। 1936 में ब्रिटिश-अमेरिकन टीम नंदा देवी पर चढ़ने वाली फीस टीम बनी। उसी टीम के बिल टिलमैन ( Bill Tilman ) और नोएल ओडेल ( Noel Odell ) पहले दो व्यक्ति है जो नंदा देवी पर्वत के शिखर तक पहुंचे। तब से अब तक केवल 13 बार ही चढाई हुई है।
क्यों अमेरिकन आये नंदा देवी पर्वत पर -
1965 में जब ये खबर आयी कि चीन तिब्बत के अंदर अपने न्यूक्लियर टेस्ट करने जा रहा है, तो उसके इस प्रोग्राम पर नजर रखने के लिए नंदा देवी पर्वत के ऊपर टेलीमेट्री डिवाइस रखी जाय जो तिब्बत में होने वाले टेस्ट पर नजर बनाए रखेगा। लेकिन इस डिवाइस को चलाने के लिए पावर की आवश्यकता थी और इतनी ठंड में किसी भी प्रकार की बैटरी का लम्बे समय तक टिकना बेहद मुश्किल था। इस परेशानी से निपटने के लिए सोचा गया कि न्यूक्लियर पॉवर का उपयोग किया जायेगा। इस मिशन के लिए दुनियां के समझे बेहतरीन पर्वतरोहियों का चुनाव किया गया पर जब मिशन को अंजाम देने का समय आया तो शिखर के बिलकुल पास अचानक मौसम खराब हो गया, जिस कारण न्यूक्लियर पॉवर डिवाइस को वही पर दबा कर निचे चले आये। कुछ समय बाद जब वे लोग वापस लौटे को सब कुछ गायब था, और उस न्यूक्लियर पॉवर डिवाइस का आज तक पता नई चला।
इस घटना के बाद कुछ टाइम के लिए सेंचुरी को बंद ही रखा गया। 1974 में इसे फिर से एक बार पर्वतरोहियों के लिए खोल दिया गया पर वहां हो रहे प्रकृति के नुकशान को देख कर 1982 में पूरी तरह से इस सेंचुरी को बंद कर दिया गया।
कौन है माँ नंदा देवी -
यूँ तो उत्तराखंड विविधताओं से भरा हुआ है। भौगोलिक दृष्टि से उत्तराखंड में मंडल है कुमाऊं और गढवाल दोनों स्थानों पर माँ नंदा देवी को पूजा जाता है। माँ नंदा को उत्तराखंड की कुल देवी भी माँ जाता है। जिनकी हर साल यात्रा और 12 साल में राजजात यात्रा होती है। माँ नंदा माता पार्वती का ही रूप है।
गढवाल के साथ-साथ माँ नंदा देवी कुमाऊं के चंद राजाओं की कुल देवी थी और माँ सुनंदा उनकी छोटी बहन थी। माँ नंदा ने हिमालय के राजा के घर प्रकट ( जन्म ) हुई , माँ का नाम मैणावती था। मात्र 11 दिन की आयु में माँ नंदा बोलने लग जाती है। और उन्होंने बोलै "मेरा नाम गौरा है और मेरा विवाह कैलाश में रहने वाले भोलेशंकर के साथ होगा। "
कैसे पहुंची माँ नंदा देवी गढवाल से कुमाऊं -
राजा लक्ष्मी चंद के बाद राजा बनते है बांज बहादुर चंद, इनका शासन काल 1638 से 1678 ई. तक रहा है। बांज बहादुर चंद ने गढवाल के कुछ हिस्सों पर आक्रमण किया और जीत की निशानी के तौर पर मंदिर से माँ नंदा देवी की मूर्ति उठा कर ले गया। वहां से लौटते टाइम राजा में वह मूर्ति जमीन पर रख थी थी , उसके बाद जब उसे उठाने लगे तो उनसे वह मूर्ति उठी नहीं। बाद में राजा ने माँ नंदा से माफ़िर मांगी और खा की वह उनकी सेवा में कोई की त्रुटि नहीं होने देगा। राजा मूर्ति लेकर अल्मोड़ा पहुंचा और अपने मल्ला महल में स्थापित करा दिया। और इस तरह माँ नंदा देवी का आगमन गढवाल से कुमाऊं में हुआ। माँ नंदा समूचे उत्तराखंड को एक सुर में पिरोने का काम करती है।
वैसे तो उत्तराखंड में कई सारे देवी देवता है लेकिन माँ नंदा से सबका अपना एक अलग ही रिश्ता है। उत्तराखंड की बेटी बोलते है माँ नंदा को तो उसे हिसाब से से कोई उसने माँ , कोई बेटी और कोई बहन के रूप में देखता है। माँ नंदा उत्तराखंड की अधिष्ठात्री देवी है।
Login to leave a comment.