चोल वंश द्वारा निर्मित तंजावुर का बृहदेश्वर मंदिर-
भारत जो अपने आप में एक विशाल धार्मिक स्थल और संस्कृति की भूमि है। भारत की इस धरती पर अनेकानेक देवी देवताओं और राजा महाराजों ने जन्म लिया है उन देवी देवताओं और राजा महाराजों के इतिहास को अपने आप में समेटे हुए बहुत सारे मंदिर आज भी हजारों सालो से खड़े है। इनमे से कुछ मंदिर रहस्यमई है।
उन्ही में से एक है तमिलनाडु के तंजावुर में स्थित बृहदीश्वर (या वृहदीश्वर) मन्दिर या उसे राजराजेश्वरम् मंदिर है। इस मंदिर का एक गौरवशाली इतिहास रहा है साथ ही साथ यह चोल वंश के विशाल साम्राज्य को भी अपनी इस ख़ूबसूरती से बयां करता है। यह मंदिर इतना विशाल है कि आप इसे तंजावुर के किसी भी कोने से देख सकते है। मंदिर भगवान शिव को समर्पित है मंदिर के अंदर आपको शिव के गण और सवारी नन्दी महाराज की भी एक बहुत विशाल मूर्ति स्थापित है। साथ में ही एक विशाल शिवलिंग भी है जिसे देख कर यह लगता है की अपने नाम बृहदीश्वर को सार्थक करता है। मंदिर में भगवान शिव की नृत्य करती हुई प्रतिमा है जिसे हम नटराज के नाम से भी जानते है। मंदिर की बनावट, इसकी पाषाण और ताम्र में शिल्पकला और वास्तुकला का एक बेजोड़ उदाहरण है। और यहां पर स्थित सुलेखों में तमिल और संस्कृत भाषा लिखी गयी है जो अपने आप में विश्व की प्राचीन भाषाओ में अपना स्थान रखती है। यही कारण है कि इस मंदिर को UNESCO ( संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन ) ने विश्व धरोहर की सूची में शामिल किया गया है। मंदिर के शिखर पर स्वर्ण कलश स्थित है। मंदिर का १३ मंजिला भवन सबको अचंभित करता है। यहां पर लिखे गए सुलेख शासकों के व्यक्तित्व को दर्शाते है।
मंदिर का वजन 1 लाख 30 हजार टन है और इसे बनाने की लिए भी 1 लाख 30 हजार टन ग्रेनाइट का उपयोग किया गया है। मंदिर में स्थित नन्दी महाराज की मूर्ति का वजन 25 टन है और कुंबन का वजन 80 टन है। मंदिर की उचाई 216 फ़ीट है। माना जाता है कि 3000 हाथियों की मदद से विशालकाय पत्थरों को यहां लाया गया। इस मंदिर के निर्माण में द्रविड़ियन शैली देखने को मिलती है।
बृहदीश्वर मंदिर का इतिहास -
बृहदीश्वर मंदिर का इतिहास 1000 सालो से भी पुराना है। मंदिर का निर्माण 1010 ईस्वी में राजा चोल प्रथम ( राजा राज प्रथम ) द्वारा किया गया। राजा राज प्रथम शैव मत के अनुयायी थे तथा उन्हें शिव पाद शेखर की उपाधि भी दी गई थी। उन्होंने अपने धार्मिक मत के अनुसार तंजावुर में राजराजेश्वरम् मंदिर का निर्माण कराया। बाद में जब मराठा शासकों के द्वारा तंजावुर में आक्रमण किया गया, तब मंदिर का नाम राजराजेश्वरम् से बदल कर बृहदीश्वर रखा गया। और तब से लेकर आज तक इसे बृहदीश्वर मंदिर के नाम से ही जाना जाता है। मंदिर में दीये जलाने हेतु घी और अन्य कामो की पूर्ति के लिए राजा ने 4 हजार गाय, 7 हजार बकरियां 30 भैसे और 2500 एकड़ जमीन दान की थी। तथा मंदिर की साफ़ सफाई और मंदिर को सुचारू रूप से चलाने के लिए 192 सेवादारी भी रखे गए थे। समय के साथ साथ राज करने वालो में इसमें बहुत सारे कलाओं को जोड़ा जैसे नायकों ने मंदिर परिसर में नन्दी महाराज की स्थापना कराई और मराठों में मंदिर की दीवारों पर चित्रकारी कर समूचे नंदिर परिसर को एक शोभा प्रदान करी।
रहस्य -
- शिखर का निर्माण इस थर से कराया गया है कि, चारों तरफ से सूरज की किरणे पड़ने के बाद भी शिखर की परछाई जमीन पर नहीं दिखती है।
- यहां पर उपयोग में लाये पत्थरों को किसी भी प्रकार के द्रब्य से चिपकाया नहीं गया है बल्कि उन्हें काट कर के एक के साथ एक को रखा गया है।
- 80 टन का कुंबन मंदिर के शिखर तक कैसे पहुंचाया गया, जबकि उस समय किसी भी प्रकार की आधुनिक मशीन नहीं थी।
- मंदिर बिना नीव के यह मंदिर हजारों सालो से खड़ा है।
अपने आप में एक अनूठा उदाहरण पेश करता है बृहदीश्वर मंदिर। जो हजारों सालों से अपने आस पास हो रहे बदलाव को देखता आया है। ना जाने कितनी पीढ़ियां इसके आस पास फली फूली और चली गयी उन सब की अमर गाथा को अपने आप में समेटे हुए यह मंदिर गर्व और वैभव से खड़ा है
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